मानवता - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

शीर्षक -  मानवता 
कवि  -  रामजी रामेष्ट दौदेरिया 


स्वार्थ के लिए अपने , क्यों सताते मानव को मानव
  जगत में कर्म बुरे करते मानव , क्यों बनते दानव 
        इंसान एक दूसरे को देते कष्ट और शूल 
     मानवता धर्म नहीं निभाते , क्यों जाते भूल 


       सारे बुरे कर्म करते , दूसरों का रक्त बहाते 
     अनेक पाप कमाते , घड़ा पाप का भरते जाते 
              भर कर फूटता घड़ा पाप का जब 
            बच नहीं सकते ईश के प्रकोप से तब 


  ईश्वर भी क्षमा नहीं करता , सताता मौत का भय 
   पाप करते रहे, पुण्य नहीं किए सोचते तब  यह 
भेजा नर को ईश ने करने पुण्य सत्यकर्म और दान 
बुद्धि ज्ञान विकसित पास तुम्हारे क्यों बनते अज्ञान 



  दूसरों को पीड़ा देना समाप्त करो हे नर 
  विनय करो ईश से ना भटके जीवन पथ पर
 अपने कष्ट पीड़ा से जीवन में ना विचलित होना
 जीवन एक युद्ध हैं धैर्य रखना , ना साहस खोना


  जीवन में हमारे अनेक कष्ट हैं आते
    उन सब से हम संघर्ष करते जाते
 इतना साहस होना चाहिए भीतर हमारे
 सागर में नीर , नभ में चमके जितने तारे



    हर इंसान के जीवन में सुख दुख आता है              
जोड़ा ये जीवन का,ना कोई इन से बच पाता है
    अपने धन बल यश वैभव पर ना करना अभिमान
भटके को राह दिखाना , किसी का मत करना अपमान



जो दूसरों का अपमान करते , गलत राह बता देते हैं
        ईश्वर जीवन पथ से उन्हें भटका देते हैं
जो दूसरों के लिए जीते , दूसरों का करते परोपकार
 वही सच्चा इंसान है , करता ईश्वर उस पर उपकार


     इस जग में जाना जाता मानव अपने कर्मों से
पा जाता हैं ईश्वर को भी पुण्य प्रेम मानवता के धर्मों से
जुर्म ना करना , जुर्म ना सहना दोनों ही पाप हैं
  जो भोगता मानव वो कर्मों से अपने आप हैं


जिन्हें  मनाव जन्म मिला वो धन्य हैं
    पूर्व जन्म में किए होगे पुण्य हैं
मानव  ईश्वर की अद्र्भुत सुंदर सृष्टी है                     
  उसकी सदैव सब पर समान दृष्टि है 


स्वार्थ ईष्या निकाल दो जो है मन में
सत्यकर्म करना सदैव मानव जीवन में
कर सको तो भला किंतु बुरा ना किसी का करना
सब से , मधुर वाणी बोलना कटु वचन ना कहना
                                         - रामजी रामेष्ट दौदेरिया
             
रामजी रामेष्ट दौदेरिया 




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