धरती पर मेहमान हम - रामजी रामेष्ट दौदेरिया
कविता शीर्षक - धरती पर मेहमान हम
कवि - रामजी रामेष्ट दौदेरिया
धरती घर है प्रकृति का
ईश एक मालिक सारी कृति का
हम धरती के मालिक नहीं
और हम इस लायक भी नहीं
हम पृथ्वी पर प्रकृति के मेहमान हैं
हमें छोड़ जाना एक दिन जहान हैं
हम धरती पर प्रकृति के घर आते
उसे ही हानि पहुँचा जाते
स्वयं अपनी हानि हम करते
तभी उम्र से पहले हम मरते
प्रकृति से मानव बहुत लभार्थी हैं
उस के प्रति फिर भी मानव स्वार्थी हैं
प्रकृति से छेड़ छाड़ने की
उसे उजाड़ने की
हमारी हिम्मत कैसे पड़ जाती हैं
हम बुद्धिहीन हैं या आत्मा हमारी मर जाती हैं
किसी के घर आ कर उसे हानि पहुँचाना
बिना विचार हानि स्वयं की कर जाना
हमें नहीं यह अधिकार हैं
आज मानव जाति पर धिक्कार हैं
प्रदूषण घोल हम दूषित कर रहे पर्यावरण
बेशर्मी से हम प्रकृति का रहे चीरहरण
मानव को प्रकृति अमृत दे रही बाँट-बाँट कर
मूर्ख मानव प्रकृति उजाड़ रहे वृक्ष काट-काट कर
हम बहुत ही धूर्त हैं
जानबूझ कर मूर्ख हैं
अपने जीवन से खिलवाड़ कर रहे
प्रकृति पर अत्याचार कर रहे
अगर उजड़ जाएगी प्रकृति की बस्ती
निश्चित है नहीं बचेगी मानव तेरी हस्ती
हे मानव कुदरत की मार से तो डरा कर
हम बस अतिथि हैं इस सुन्दर धरा पर
- रामजी रामेष्ट दौदेरिया
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें