दिल्ली को झोक दिया दंगो की आग में - रामजी रामेष्ट दौदेरिया
शीर्षक - दिल्ली को झोक दिया दंगो की आग में
कवि - रामजी रामेष्ट दौदेरिया
दिल्ली को झोक दिया दंगो की आग में
किसी का मकान जला किसी की दुकान जली
मानवता का कौन दुश्मन किस ने ये चाल चली दिल्ली दहल उठी, हुई है वेगुनाह की मौतें
नहीं थमी फिर भी दंगगाईयों की साँसें
हाहाकार करते लोग वहाँ से लगे है भागमभाग में
दिल्ली को झोक दिया दंगो की आग में
बापू ने सिखाया हमे आंदोलन करना अहिंसा से
सारा शहर जला कर रख दिया तुम ने हिंसा से
उजाड़ दिए किस नफ़रत में तुम ने लोगों के घर
ना संविधान से ना सरकार से तुम्हें लगता डर
बंद करो गीत गाना तुम नफ़रत के राग में
दिल्ली को झोक दिया दंगो की आग में
पहले पढ़ो समझो आखिर क्या है कानून
यूँही मत बहाओ भाई होकर भाई का खून
हमारा ही घर फूँकती नफ़रत हमारी
भूल जाते हम देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी
चंद लोग है जयचंद देश के झोक दो उन्हें चिता की आग में
दिल्ली को झोक दिया दंगो की आग में
देश के दुश्मन हुए इकट्ठे शाहीन बाग में
दिल्ली को झोक दिया दंगो की आग में
- रामजी रामेष्ट दौदेरिया
रामजी रामेष्ट दौदेरिया
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