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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धरती पर मेहमान हम - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

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कविता शीर्षक - धरती पर मेहमान हम        कवि - रामजी रामेष्ट दौदेरिया        धरती घर है प्रकृति का  ईश एक मालिक सारी कृति का    हम धरती के मालिक नहीं  और हम इस लायक भी नहीं  हम पृथ्वी पर प्रकृति के मेहमान हैं  हमें छोड़ जाना एक दिन  जहान हैं  हम धरती पर प्रकृति के घर आते       उसे ही हानि पहुँचा जाते  स्वयं अपनी हानि हम करते  तभी उम्र से पहले हम मरते     प्रकृति से मानव बहुत लभार्थी हैं  उस के प्रति फिर भी मानव स्वार्थी हैं  प्रकृति से छेड़ छाड़ने की       उसे उजाड़ने की            हमारी हिम्मत कैसे पड़ जाती हैं  हम बुद्धिहीन हैं या आत्मा हमारी मर जाती हैं  किसी के घर आ कर उसे हानि पहुँचाना    बिना विचार हानि स्वयं की कर जाना         हमें नहीं यह अधिकार हैं  आज मानव जाति पर धिक्कार हैं  प्रदूषण घोल हम दूषित कर रहे पर्यावरण     बेशर्मी से हम प्रकृति का रहे चीरहरण    मानव को प्रकृति अमृत दे रही बाँट-बाँट कर  मूर्ख मानव प्रकृति उजाड़ रहे वृक्ष काट-काट कर        हम बहुत ही धूर्त हैं       जानबूझ कर मूर्ख हैं  अपने जीवन से खिलवाड़ कर रहे     प्रकृति पर अत्याचार कर रहे  अगर उजड़ ज

मेरे लिए शाकाहारी गर्व की बात - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

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कविता शीर्षक - शाकाहारी गर्व की बात         कवि -  रामजी रामेष्ट दौदेरिया          किसी जीव जन्तु पर मैं अत्याचार नहीं करता  मैं शाकाहारी हूँ किसी को मार कर अपना पेट नहीं भरता                मुझे गर्व है शाकाहारी होने पर  क्या मुँह दिखाऊगा ईश्वर को मांसाहारी होने पर  मुझे गर्व है मेरा भोजन शुद्ध पवित्र हैं    हत्या हिंसा चीख पाप से रहित हैं  मैं पशु नहीं जो किसी पशु को मार कर खाऊ  मैं इंसान हूँ जीवों के दर्द का अनुमान लगाऊ  मांसाहारियों से कड़वी एक बात कहना चाहूंगा   मैं जीवों पर हिंसा का एहसास दिलाना चाहूंगा  क्या अपने बच्चों को मार कर आग में तल कर खा सकते हो जवाब तुम्हारा निश्चित होगा नहीं  फिर क्यों कैसे दूसरे जीवों पर हिंसा करना उन्हें मार कर खाना तुम्हें लगता सही  अपने किसी शारीरिक अंग को तड़पाओं जलाओ फिर उसे खाओ  क्या ऐसा कर पाओगे, कर के जरा अपने किसी अंग का स्वाद बताओ  सुन लो बेजुबानों की पुकार बन्द करो उन पर अत्याचार  बिना मांसाहार मनाओं त्योहार, शाकाहार करो स्वीकार  शाकाहारी भोजन बनते मेरे सारे त्योहारों पर   अत्याचार नहीं करते हम जीव जानवरों पर  शाकाहारी भोजन से सदा हष्ट पुष्

प्लास्टिक एक बहुत बड़ी समस्या है धरती पर प्लास्टिक का बहिष्कार करें - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

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        कविता शीर्षक - धरती पर समस्या प्लास्टिक                     कवि  - रामजी रामेष्ट दौदेरिया                         धरती पर सबसे बड़ी                           समस्या यह खड़ी                        समस्या वह महा विकट                        कैसे खत्म हो प्लास्टक                          धरा पर क्या करा जाए                  प्लास्टिक का कैसे अंत करा जाए                 प्लास्टिक धरा पर समझो दानव है            खत्म नहीं हुआ तो खत्म समझो मानव है       खेतों में प्लास्टिक जब जाती अंदर धंसती जाती        यह गलती नहीं यह सड़ती नहीं, यह तो जम जाती             प्लास्टिक खेतों को बंजर बना जाती       भीतर ही भीतर भूमि को खोखला कर जाती                       नाला नाली में अड़ जाती                        समस्या बड़ी बढ़ जाती                   पानी का निकास रुक जाता                पर्यावरण का विकास रुक जाता         अगर बंद नहीं हुआ प्लास्टिक का उपयोग                 तरह - तरह के आएंगे इन से रोग                   प्लास्टिक के बर्तन बोतल थैला                       कर देंगे सारा संसार म

मोदी सरकार के महत्वपूर्ण कार्य पढ़े कविता के जरिए - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

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                प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी  कविता शीर्षक -  विश्वगुरु बनेगा हिन्दुस्तान    कवि  -  रामजी रामेष्ट दौदेरिया  पुरानी से पुरानी बीमारियों का कर दिया इलाज  सारे जग में हो रहा हिन्दुस्तान का गुणगान आज  सारी दुनिया मोदी के साथ सुन कर एक आवाज  फिर से अवश्य मिलेगा भारत को विश्वगुरु का ताज     तीन तलाक को खत्म किया   मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिया   धारा तीन सौ सत्तर, पैंतीस ए हटाया   कश्मीरी पंडितों को घर वापस दिलाया       पुरानी समस्याओं का हो गया समाधान  श्रीराम को भी मिला अयोध्या में अपना मकान           भव्य राम मंदिर का हो रहा निर्माण           सत्य की हुई जीत, दिए सारे प्रमाण  पाकिस्तान थर-थर कांपे चीन भी डर कर भागे         बढ़ रहा दुनिया में भारत तेजी से आगे  ऐसे ही होता रहा काम समस्याओं का समाधान    इक्कीसवी सदी में विश्वगुरु बनेगा हिन्दुस्तान                                        - रामजी रामेष्ट दौदेरिया                                                  लेखक, कवि

पहले हम हैं एक इंसान - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

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शीर्षक - पहले हम हैं एक इंसान   कवि - रामजी रामेष्ट दौदेरिया  ना हिंदू ना मुसलमान  पहले हम हैं एक इंसान  खत्म करो नफ़रत की आग को  महका दो प्यार भाईचारे के बाग को  दिल में दया रखो जुवा पे राम  मिलकर करो भाईचारे से काम  सबसे पहले मानवता, राष्ट्रधर्म हो हमारी पहचान  ना हिंदू ना मुसलमान  पहले हम हैं एक इंसान  हिंदू मुस्लिम में नफ़रत फैलाते कुछ लोग जमाने से  नेताओं को मतलब अपनी राजनीति चमकाने से  कुछ ना मिलेगा नुकसान हमारा होगा आपस में खून बहाने से  हम रहे मिलकर, बातों में न आए किसी के फुसलाने से  राष्ट्रीय एकता है हमारी आन मान शान  ना हिंदू ना मुसलमान  पहले हम हैं एक इंसान  ईश्वर एक हैं,एक है मंदिर मज्जिद और गुरुद्वारा  नफ़रत खत्म हो सदा रहे भाईचारा हमारा  भारतवर्ष की धरती को आओ मिलकर नमन करें  बसी हैं दिलों में नफरते आओ इन का दमन करें  घर है अपना सारा हिन्दुस्तान  ना हिंदू ना मुसलमान  पहले हम हैं एक इंसान                                  हम ना एक दूसरे के घर जलाए  आओ मिलकर देश को एक घर बनाए  शांति से रहे दिलों में प्यार बसाए  हम आज्ञानी हैं इंसान  बुद्वी सतबुद्वी हमे दो भगवान  ना हिंदू ना मु

हर किसी को पढ़नी चाहिए ये महा मोटिवेशनल कविता, निश्चित आखिर में तू जीत जाएगा - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

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शीर्षक - निश्चित आखिर में तू जीत जाएगा     कवि  - रामजी रामेष्ट दौदेरिया        जब सब कुछ खत्म हो जाता है   इंसान तब अक्सर तनाव में आता है  अनगिनत हो सकते हैं तनाव के कारण  पर हर एक कारण का होता है निवारण  आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है   बात कुछ समझ नहीं आती है  या कर्ज तले दब जाता है    फिर  उभर नहीं पता है  या गम्भीर शारीरिक रूप से तंग होता है     जब कोई नहीं उस के संग होता है     चारों ओर दुनिया भर का मेला  फिर भी महसूस करता वह अकेला     जब पल पल घुटता वह इंसान  हर पल मरता उस का मान सम्मान  बार - बार होता जब उस का अपमान     तब सोचता वह ले लू अपनी जान       चारों तरफ से परेशानियों में घिर जाता है  समस्या का समाधान जब कुछ नज़र नहीं आता है    जब सब कुछ खत्म हो जाता है  इंसान तब अक्सर तनाव में आता है    तब अक्सर इंसान निर्णय ले लेता है     मैं अपने प्राण दे दूंगा ये कह देता है  फिर भी कोई निश्चित नहीं की वह अपने प्राण ले ले  कहते लड़ते संघर्ष करते वह ये सारे दुख दर्द सह ले    ज़िंदगी से वह कभी हार ना माने  हो सकता वह हमेशा लड़ने की ठाने   लड़ते - लड़ते संघर्ष करते बहुत कुछ वह सीख जाएगा  निश्चित

Article by Ramji Ramesht Dauderiya - रामजी रामेष्ट दौदेरिया के लेख विचार

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लेख, विचार, कविताएँ  रामजी रामेष्ट दौदेरिया       लेखक-कवि