मेरे लिए शाकाहारी गर्व की बात - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

कविता शीर्षक - शाकाहारी गर्व की बात 
       कवि -  रामजी रामेष्ट दौदेरिया 


        किसी जीव जन्तु पर मैं अत्याचार नहीं करता 
मैं शाकाहारी हूँ किसी को मार कर अपना पेट नहीं भरता 

              मुझे गर्व है शाकाहारी होने पर 
क्या मुँह दिखाऊगा ईश्वर को मांसाहारी होने पर 

मुझे गर्व है मेरा भोजन शुद्ध पवित्र हैं 
  हत्या हिंसा चीख पाप से रहित हैं 

मैं पशु नहीं जो किसी पशु को मार कर खाऊ 
मैं इंसान हूँ जीवों के दर्द का अनुमान लगाऊ 

मांसाहारियों से कड़वी एक बात कहना चाहूंगा 
 मैं जीवों पर हिंसा का एहसास दिलाना चाहूंगा 

क्या अपने बच्चों को मार कर आग में तल कर खा सकते हो जवाब तुम्हारा निश्चित होगा नहीं 
फिर क्यों कैसे दूसरे जीवों पर हिंसा करना उन्हें मार कर खाना तुम्हें लगता सही 

अपने किसी शारीरिक अंग को तड़पाओं जलाओ फिर उसे खाओ 
क्या ऐसा कर पाओगे, कर के जरा अपने किसी अंग का स्वाद बताओ 

सुन लो बेजुबानों की पुकार बन्द करो उन पर अत्याचार 
बिना मांसाहार मनाओं त्योहार, शाकाहार करो स्वीकार 

शाकाहारी भोजन बनते मेरे सारे त्योहारों पर 
 अत्याचार नहीं करते हम जीव जानवरों पर 

शाकाहारी भोजन से सदा हष्ट पुष्ट रहोगें 
   मांसाहारी भोजन से सदा दुष्ट बनोगें 

शाकाहारी से सोच सकारात्मक रहती है 
शरीर में ऊर्जा सदा सकारात्मक बहती है 

जो भोजन करते मांसाहारी वो दानव प्रवृति के
जो भोजन करते शाकाहारी वो मानव प्रकृति के
                                     - रामजी रामेष्ट दौदेरिया 
रामजी रामेष्ट दौदेरिया 
लेखक कवि 
    



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