श्री परशुराम स्तुति, जयति जयति जय श्री परशुराम - रामजी रामेष्ट दौदेरिया

शीर्षक - जयति जयति जय श्री परशुराम 
       ( श्री परशुराम स्तुति ) 
कवि -  रामजी रामेष्ट दौदेरिया 

   जयति जयति जय जय जय श्री परशुराम 
कंधे धनुष हाथ में परशु शत्रु काँपे सुन तेरा नाम 

रेणुका जमदग्नि पुत्र, भार्गव बिप्र कुल महान 
     दूजा नहीं भगवन कोई तेरे समान 
माता के चरणों का लेकर तुम ने आशीष 
पिता आज्ञा से माता का काट दिया शीश 

तब पिता ने कहा तुम से माँग लो वरदान 
तुम ने माँगा दे दो मेरी माँ को जीवनदान 
वरदान से तुम ने जीवित माता को पाया 
 पिता आज्ञा का भी तुम धर्म निभाया 

सहास्त्रार्जुन के कारागार से मुक्त रावन को कराया 
    सुरक्षित लंकेश को तुम ने लंका में पहुँचाया 
  छठे अवतार विष्णु के तुम महाप्रयांकारी 
सहस्त्रार्जुन वध किया, था वह महाअत्याचारी 

 क्रोध की ज्वाला तेरी महाभारी 
संहार दिये तुम ने सारे अत्याचारी 
भू विहीन क्षत्रिय किये इक्कीस बार तुम ने बारी बारी 
      गुरु है तेरे देवो के देव महादेव त्रिपुरारी 

   मन की गति से तेज गति तेरे चालाएमान की   
जयति जयति जय ज्ञान के निधान बिप्र महान की  
अपने गुरु शिव की तुम ने कठिन साधना की 
    मन ही मन कठिन शिव आराधना की 

प्रसन्न होकर शिव ने तुम्हें अलौकिक धनुष प्रदान किया 
जनकपुरी जाकर जनक के यहाँ तुम ने धनुष रख दिया 
      अत्याचार ना सह कर तुम ने परशु उठाया  
तुम्हारे इतिहास ने हमें अत्याचार से लड़ना सिखाया 

परशु के साथ जुड़ा तुम्हारा नाम 
बचपन का नाम था तुम्हारा राम 
 राम से हुए तुम परशुराम 
जयति जयति जय परशुराम 

      जयति जयति जय जय जय श्री परशुराम 
कंधे धनुष हाथ में परशु शत्रु काँपे सुन तेरा नाम 

                    - रामजी रामेष्ट दौदेरिया 

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